समय के महापुरुष को लोग जल्दी पहचान नहीं पाते और जाने के बाद उन्ही को भगवान, परमात्मा कह कर मंदिर, मठ बनाते हैं : उमाकान्त जी महाराज

  • पेड़-पत्थरों पर सर पटकते मुक्ति-मोक्ष खोजते रहे तो धोखे में रह जाओगे, जीवन का समय निकल जाएगा 
  • महापुरुषों की पहचान धार्मिक किताबों, वेदों में सारी लिखी है लेकिन लोग पढ़-समझ नहीं पाते 

 समस्तीपुर, बिहार। परमात्मा के भेजे हुये उन्ही के तदरूप इस समय के पूरे महापुरुष मुक्ति-मोक्ष का रास्ता नामदान बताने के एकमात्र अधिकारी उज्जैन वाले पूज्य सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 2 मार्च 2021 को समस्तीपुर (बिहार) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित लाइव संदेश में बताया कि महापुरुष जब रहते हैं तब उनको जल्दी लोग पहचान नहीं पाते। नजदीक जाते नहीं। नजदीक अगर जाएं तो मालूम नहीं रहता है कि कैसे पहचाना जाता है। धार्मिक किताबों में तो सब लिखा है।

लेकिन उनको समझ- पढ़ नहीं पाते। वेद में भी सारी चीजें लिखी हुई है लेकिन वेद तो संस्कृत में लिखा गया था। संस्कृत सबको आती नहीं है तो समझ नहीं पाते हैं। अगर वह कुछ बताते हैं तो दुनिया से अलग की चीजें होती हैं, जल्दी विश्वास नहीं होता, जल्दी लोग करते नहीं हैं इसलिए जल्दी नहीं पहचान पाते हैं। जब वो चले जाते हैं, उनका काम लोग जब देखते हैं तब कहते हैं यह तो भगवान थे, परमात्मा थे। अब उनकी मूर्ति, मंदिर, स्थान, समाधि, मठ आदि बनाओ। 

मूर्तियों से कुछ पूछो तो बता नहीं सकती तो मुक्ति-मोक्ष कैसे दे सकती हैं : मठ, मंदिर, मूर्ति आदि एक जगह से दूसरी जगह आ जा नहीं सकती। कुछ कहो, दिखाओ, पूछो तो सुन, देख, बता नहीं सकती। तो मुक्ति-मोक्ष कैसे दे सकती हैं? 

पेड़ पत्थरों पर सर पटकते मुक्ति-मोक्ष खोजते रहे तो धोखे में रह जाओगे, जीवन का समय निकल जाएगा : मूर्ति, स्थापित करने, मान्यता देने वाले सब आदमी ही तो होते हैं। जिसकी जैसी श्रद्धा, भावना, खान-पान, चाल-चलन, आचार-विचार, रहनी-गहनी होती है उसको वैसा फल मिल जाता है। लेकिन यदि ये सोचो कि फोटो की पूजा करने से या पेड़-पौधा, पत्थर पर मत्था पटकने से मुक्ति-मोक्ष हो जाएगा तो वो ऐसे नहीं हो सकता है। धोखे में रह जाओगे और आपके जीवन का अनमोल समय निकल जाएगा, बेकार चला जाएगा। 

जन्म दिन का मतलब उसकी उम्र कम हो गयी है : दिन-रात जो आते हैं यह आपकी उम्र को खत्म कर दे रहे हैं। कहते तो हो मेरा बेटा पांच साल का हो गया उसका जन्मदिन है, पूड़ी-मिठाई खाओ-खिलाओ, जश्न-खुशी मनाओ, मेरा बेटा बढ़ रहा है। वो बढ़ रहा है या घट रहा है? पांच साल उसकी उम्र खत्म हो गई। 

सन्तमत में गुरु ही सब कुछ होते हैं, अन्य मतों में भी गुरु की पूजा लोग करते हैं : बताया गया है कि-

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काकै लागै पाय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।।

गुरु ही सब कुछ होते हैं। कहा गया है- 'गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छूटना'। गुरु ही संतमत में सब कुछ होते हैं। और संतमत के जो मानने वाले आप हो, हम भी संतमत का प्रचार करने वाले हैं, गुरु की तस्वीर इसलिए लगाते हैं कि ध्यान करते समय गुरु का चेहरा याद आ जाये। सबसे पहले गुरु का ही ध्यान किया जाता है। फोटो देख लो तो चेहरा याद आ जाता है। और जो गुरु के बताई साधना करने लगते हैं उन्हें ध्यान में, अन्तर में गुरु का दर्शन होने लगता है तब फोटो भी लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। 

जैसे घर में झाड़ू रोज लगाते हैं ऐसे ही जो साधना आपको बताई गई उसे रोज करना जरूरी ताकि कर्मों की गंदगी इकट्ठा न हो : आप गुरु का दर्शन अंतर में नहीं कर पाते हो तो भूल-भ्रम में पड़कर भटक जाते हो। गुरु महाराज सतसंग सुना कर आपके अंदर सुधार लाते थे, दर्शन देकर, स्पर्श करके कर्म काटते थे लेकिन अब गुरु महाराज के पास आप पहुंच नहीं पाते हो और जिस समाज में आप रहते हो, कर्म वही गंदगी, झूठ, फरेब, बेईमानी सब कुछ करते हो जो दुनियादार लोग करते हैं और उसकी सफाई नहीं कर पाते हो। 

सिमरन ध्यान भजन यह झाड़ू है, कर्मों की सफाई करने के लिए है। जैसे घर में झाड़ू रोज न लगाओ तो कूड़ा-कचरा इकट्ठा हो जाएगा ऐसे ही कर्मों की गंदगी जो रोज-रोज इकट्ठा करते हो, वो झाड़ू से साफ नहीं कर पाते। कर्म इकट्ठा होते जाते हैं, मोटा पर्दा दिव्य दृष्टि वाली आंख के सामने जमा हो जाता है जिससे गुरु का दर्शन नहीं हो पाता है। अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रकट चंदन से होई। शीतल चंदन में भी रगड़ से अग्नि पैदा हो जाती है। पड़े रहो दरबार में, धक्का धनी का खाये, कभी तो गरीब नवाजे, जो दर छोड़ न जाये। 

गुरु का अंतर में दर्शन हो जाए तो सारा भटकाव खत्म हो जाएगा : सुमिरन, ध्यान, भजन करने वालों को गुरु का दर्शन अंतर में हो जाता है और सारी शंका, भटकाव खत्म हो जाता है। फिर उनको कहीं भी जाने की जरूरत नहीं रहती है। फिर तो उनको गुरु के ही वचन याद रहते हैं, उन्हें ही याद रखते हैं और उन्ही पर चलते हैं। तो आप लोग अपने को, गुरु को, परमात्मा को जानने, दर्शन-दीदार करने के लिए गुरु महाराज जी ने जो तरीका भजन का, जीवात्मा के उद्धार का बताया है उसे आप करते रहो। 

सन्त उमाकान्त जी के वचन 

अच्छी शिक्षा, अच्छा ज्ञान, अच्छी बुद्धि को मिले सम्मान। सन्त-सतगुरु किसी दाढ़ी, बाल या वेशभूषा का नाम नहीं होता। मनुष्य शरीर बड़ा अनमोल, सतगुरु मिलें भेद दे खोल। हाथ जोड़ कर विनय हमारी, हो जाओ सब शाकाहारी। तीसरा नेत्र खुल जाने पर खुदा, भगवान, गोड एक ही नजर आते हैं।

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